यार, तुम खड़े-खड़े सोया करो
सदियों पूर्व यह कहा था किसी ने घोड़े से
कि जाने कब जाना पड़े लंबे सफर पर
छिड़ जाए युद्ध या बादशाह का मूड हो जाए तफरीह को
वजीर रात अँधेरे निकले प्रजा देखने
डकैत को भागना पड़े अपना ठिकाना छोड़
या कि काफिला चल पड़े दूर-सुदूर
खड़े-खड़े सोने से तत्काल कूच करने में
समय तो नष्ट न होगा
बात जम गई घोड़े को
उसने संकल्प लिया कि वह खड़े-खड़े सोएगा
और जिस दिन बैठ गया तो समझो बैठ ही गया
युग बदले, घोड़े की भूमिका पहले जैसी नहीं रही
अब वह रेसकोर्स में भागता है सरपट
शादी-ब्याह या बग्घी में दीख पड़ता यदा-कदा
लेकिन आदत या संकल्पवश
वह आज भी खड़े-खड़े सोता है
और यह भी जानता है कि
आदमी ही उसकी सवारी करेगा।